भारत की राष्ट्रभाषा क्या है? Bharat ki Rashtrabhasha kya hai? – भारत की राष्ट्रभाषा के बारे में चर्चा करते समय, यह प्रश्न हमारे मन में सबसे पहला उठता है – भारत की राष्ट्रभाषा कौन सी है? Bharat ki Rashtrabhasha kaun si hai? यह सवाल न केवल एक भाषा की पहचान से जुड़ा है, बल्कि एक गहरे सांस्कृतिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य के साथ जुड़ा हुआ है। भारत एक विविध और अनूठे संस्कृति का देश है, और इसकी भाषाओं का अद्वितीय संग्रहण है।
भारत देश की राष्ट्रभाषा क्या है? Bharat Desh ki Rashtrabhasha kya hai? यह एक साधारण सवाल से ज्यादा है, यह एक भाषा के प्रति हमारे संविधान और समाज की एक गहरी भावना को दर्शाता है। इस लेख में, हम “भारत की राष्ट्रभाषा क्या है?” के इस महत्वपूर्ण प्रश्न को गहराई से जानने का प्रयास करेंगे, और हम देखेंगे कि क्या हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और इसका देश के सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप में क्या महत्व है।
भारत की राष्ट्रभाषा क्या है? Bharat ki Rashtrabhasha kya hai?
भारत की संविधानिक रूप से मान्य राजभाषा “हिन्दी” है। हिन्दी, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत नामांकित है और यह देश की सरकारी कार्यों और आधिकारिक संदेशों के रूप में प्राथमिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है। संविधान सभा ने भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान हिंदी को भारत की संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस महत्वपूर्ण घड़ी को मनाने के लिए, हर साल 14 सितंबर को भारत में “हिन्दी दिवस” के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हिंदी भाषा का महत्व क्या है और कैसे यह हमारे राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। हिन्दी दिवस के माध्यम से हम अपनी भाषा के प्रति गर्व और समर्पण को और भी मजबूत करते हैं और इसे बढ़ावा देते हैं।
इसके साथ ही, भारतीय संविधान भाषा की आधिकारिकता को सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को अपनी संविधानिक भाषा का चयन करने की स्वतंत्रता देता है, और वे अपनी आधिकारिक कामगिरी और संचालन को अपनी चयनित भाषा में कर सकते हैं।
राष्ट्रभाषा किसे कहते हैं राष्ट्रभाषा और राजभाषा में क्या अंतर है?
राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अर्थ स्पष्ट करने के लिए, हमें यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये दो अलग-अलग अवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
राजभाषा: राजभाषा एक विशेष राज्य की भाषा होती है, जिसमें उस राज्य के सभी शासकीय कार्य और पत्राचार किया जाता है। इसका मकसद राज्य के लोगों को उनकी अधिकृत भाषा में सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करना है, ताकि उन्हें सरकारी कामों में किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना न करना पड़े। भारत में कई राज्यों की अपनी-अपनी राजभाषाएँ होती हैं, जैसे कि तमिल, मराठी, बंगाली, गुजराती, आदि। भारत की राजभाषा हिन्दी है, जो संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत निर्धारित की गई है।
राष्ट्रभाषा: राष्ट्रभाषा संपूर्ण राष्ट्र की भाषा होती है, और इसे अनिवार्य रूप से पूरे देश में अपनाया जाता है। यह भाषा एकता और संवाद के रूप में कार्य करती है, जबकि राजभाषाएँ राज्य की विशेषता को दर्शाती हैं। अभी तक देश में किसी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं है, और सभी भाषाओं को एक समान सम्मान और आदर मिला हुआ है। देशवासी पूरे देश में अपनी मातृभाषा की गरिमा और महत्व को समझते हैं और उनके लिए यह मातृभाषा ही उनकी पहचान और अद्भुत संस्कृति का हिस्सा होती है।
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य
यद्यपि भारत एक बहुभाषायी देश था, किन्तु बहुत लम्बे काल से हिन्दी या उसका कोई स्वरूप इसके बहुत बड़े भाग पर सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होता था। भक्तिकाल में उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक अनेक सन्तों ने हिन्दी में अपनी रचनाएँ कीं। स्वतंत्रता आन्दोलन में हिन्दी पत्रकारिता ने महान भूमिका अदा की। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सुब्रह्मण्य भारती आदि अनेकानेक लोगों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने का सपना देखा था।
महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ‘राजभाषा’ के लक्षण बताए थे
- प्रयोग करने वालों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
- उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।
- यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
- राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
- उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।
- भारत के सन्दर्भ में, इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।
राजभाषा अधिनियम
सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम में विधान है कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी हिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित करें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए।
सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। इसमें १९८७, २००७ तथा २०११ में कुछ संशोधन किए गए।
Bharat ki Rashtrabhasha kya hai? – FAQs
हिन्दी किसी भी देश की राष्ट्रभाषा नहीं है। यह सिर्फ भारत और फिजी में राजकीय कामकाज की भाषा है या राजभाषा है।
हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है। देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है और यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। महात्मा गांधी ने साल 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी।
चूंकि हिन्दी को संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया, इसीलिए भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय दर्जा नहीं दिया गया है। अतः भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं की सूची है। अनुच्छेद 351, एक निर्देशात्मक आदेश में कहा गया है कि हिंदी के प्रसार को बढ़ावा देना सरकार का कर्तव्य है।
भारत के बाहर हिन्दी जिन देशों में बोली जाती है उनमें पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान